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गाथा परम विजय की
जम्बूकुमार विवेकसंपन्न है, धर्मसंपन्न है, अपने आपसे लड़ने में विश्वास करता है किन्तु प्रसंग ऐसा आ गया कि बाहर से लड़ना भी जरूरी हो गया। वह युद्ध के मैदान में है। राजा मृगांक की सेना भी सज्जित होने लगी। रणभेरी बजी। रत्नचूल को सूचना मिली-मृगांक की सेना युद्ध के लिए प्रयाण कर रही है। युद्ध के मैदान में पहुंचने के लिए तत्पर है।
ततो दुन्दुभिनिर्घोषैः, रत्नचूलोप्यनिद्रितः।
ज्वलतः क्रोधाग्निना योद्धं, कृतांतः कोपितः किमु।। रत्नचूल क्रोध की अग्नि से जल उठा। अग्नि बाहर से जलाती है। एक अग्नि भीतर भी बैठी है। दुनिया में जो बाहर है, वह भीतर भी है। क्रोध की आग इतनी तेज है कि वह आदमी को जला देती है। क्रोध, भय, चिन्ता, तनाव ये सब पड़ोसी हैं, साथी हैं। सब एक-दूसरे के साथ आते हैं। ___जब क्रोध, चिन्ता सताती है, आदमी जल उठता है। जलने का मतलब क्या है? वह सचमुच मरता है। एक आदमी सौ वर्ष जीने वाला है। बार-बार गुस्सा करेगा तो संभवतः पचास वर्ष में ही मर जाएगा। क्रोध से आयु बहुत क्षीण होती है। जब-जब क्रोध का उत्ताप आता है, व्यक्ति भीतर ही भीतर सूखने लग जाता है, आयु घटने लग जाती है।
गणित की भाषा में एक वैज्ञानिक ने इसका लेखा-जोखा किया। उसने कहा-'दो-चार मिनट का तेज गुस्सा नौ घंटे की आयु कम कर देता है। रोज दो-चार बार तेज गुस्सा करता चला जाए तो आयु क्यों नहीं घटेगी? सौ वर्ष जीने वाला पचास-साठ में क्यों नहीं मरेगा?'
रत्नचूल को इतना तेज गुस्सा आया, बोला-'दुर्ग में बंद हुआ बैठा था। अब इतना बल आ गया कि मेरी सेना पर आक्रमण करने आ रहा है!' रत्नचूल सहन नहीं कर सका, जल-भुन उठा। स्वयं कक्ष से बाहर आया। सेना को युद्ध का निर्देश दिया।
अथ द्वाभ्यां च सेनाभ्यामारब्धं युद्धमुल्वणम्।
हाहाकारकरं रौद्र, कृतभीषणनिःस्वनम्।। रत्नचूल और मृगांक दोनों की सेनाओं में युद्ध शुरू हो गया। जम्बूकुमार अकेला नहीं रहा। ___ भूमि और आकाश-दोनों ओर युद्ध शुरू हो गया। विमानों में बैठे विद्याधरों का युद्ध भी प्रारंभ हो गया
और पदाति-सेना का युद्ध भी प्रबल हो गया। विमान में एक ओर रत्नचूल बैठा है, दूसरी ओर व्योमगति, दोनों विद्याधर, दोनों शक्तिशाली, दोनों में तीव्र युद्ध। ___ आवेश में कुछ पता नहीं चलता। मदिरा का आवेश होता है, भान नहीं रहता। आवेश केवल मदिरा का ही नहीं होता, क्रोध का भी होता है। आवेश काम और लोभ का भी होता है। आवेश यक्ष और भूत पिशाच का भी होता है। अनेक प्रकार के आवेश बतलाए गए हैं। जब आदमी आवेश से आविष्ट होता है, उस समय उसकी विवेक-चेतना काम नहीं करती। मनोविज्ञान की भाषा में रीजनिंग माइण्ड निष्क्रिय बन जाता है, एनिमल ब्रेन पाशविक मस्तिष्क सक्रिय बन जाता है। सैनिकों का पाशविक मस्तिष्क सक्रिय बन गया। एक-दूसरे पर विद्या का प्रयोग होने लगा।