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व्योमगति ने देखा-रत्नचूल पुनः युद्ध के मैदान में आ गया है। लड़ाई के मूड में है। अब मुझे भी। सामने जाना चाहिए। राजा मृगांक का सहयोग करना चाहिए।
व्योमगति और रत्नचूल-दोनों विद्या के अधिष्ठाता फिर आमने-सामने आ गए।
रत्नचूल ने सबसे पहले तमिस्रा' विद्या का प्रयोग किया। मध्याह्न में बारह बजे का समय। प्रचंड धूप, प्रकाश सब कुछ था। 'तमिस्रा' विद्या का प्रयोग किया, अमावस की घोर अंधियारी रात हो गई। हाथ से हाथ दिखना बंद हो गया। कभी-कभी रात में अकस्मात् घोर अंधियारा हो जाता है। अचानक बिजली चली जाती है, कुछ क्षण के लिए ऐसा हो जाता है, जैसे अमावस की रात आ गई है। हाथ से हाथ दिखना बंद हो जाता है।
पक्ष और प्रतिपक्ष दोनों होते हैं। अग्नि बरसाओ तो बादल तैयार हैं। अंधकार करते हैं तो प्रकाश की विद्या तैयार है। पक्ष-प्रतिपक्ष दोनों प्रकार की विद्याएं चलती हैं। आजकल अणुशस्त्र के युग में रासायनिक शस्त्रों से युद्ध होता है। ऐसे रासायनिक कीटाणु बरसाते हैं कि सैनिक बीमार हो जाते हैं। उससे भी आगे रश्मियों का शस्त्र बनाने की तैयारियां हो रही हैं। कुछ भी करने की जरूरत नहीं। एक किरण का विकिरण करो, सामने वाली सेना बिल्कुल पागल बन जाएगी, शून्य बन जाएगी। उसे स्मृति नहीं रहेगी कि क्या हो रहा है? हथियार नीचे गिर
जाएंगे।
गाथा परम विजय की
__आजकल ऐसे प्रयत्न हो रहे हैं। पुराने जमाने में भी बहुत होते थे। जिन्होंने रामायण और महाभारत सुना है, पढ़ा है, वे जानते हैं कि युद्ध में विद्याओं का कितना प्रयोग हुआ था! महाभारत काल में कितनी विद्याएं थीं! हिन्दुस्तान बहुत समृद्ध देश था, विद्या का बहुत विकास हुआ था। आज कहते हैं हिन्दुस्तान विकसित नहीं है। पांच हजार वर्ष पहले यहां इतना विकास था कि कल्पना नहीं की जा सकती किन्तु उस महायुद्ध में विद्या के बड़े-बड़े जानकार, अनुभवी समाप्त हो गए। एक प्रकार से हिन्दुस्तान का विकास भी अवरुद्ध हो गया। जबजब बड़े युद्ध होते हैं, इतना विनाश होता है कि सैकड़ों-हजारों वर्षों तक पूर्ति नहीं होती।