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गाथा
सैनिक एक अजीब दृश्य देख रहे हैं। न पैर काम कर रहे हैं, न हाथ।
जम्बूकुमार ने कहा-रत्नचूल! मैंने बहुत समझाया। मैंने सोचा था-तुम हित की बात समझ जाओगे। मुझे कोई लेना-देना नहीं है। न श्रेणिक से लेना-देना, न मृगांक से लेना-देना, न तुमसे लेना-देना। मैं जैन धर्म को जानता हूं, महावीर को जानता हूं। महावीर ने यह कहा-अनावश्यक हिंसा मत करो। मैं अनावश्यक हिंसा को टालने के लिए आया हूं। मैंने वही बात तुमको समझाने का प्रयत्न किया। किन्तु-पयःपानं भुजंगानां, केवलं विषवर्धनम् सांप को दूध पिलाना जहर बढ़ाने के लिए होता है। मेरा प्रयत्न ऐसा ही हुआ। उसका कोई सार्थक परिणाम नहीं आया। राजन्! अब मैं रणभूमि में जा रहा हूं।'
यह कह कर जम्बूकुमार कक्ष से बाहर आ गया। उसके पीछे सैकड़ों सैनिक हो गए। ___ जम्बूकुमार युद्धभूमि में पहुंच गया। स्वामी का आदेश प्राप्त कर सैनिक पीछे-पीछे दौड़े पर कुछ कर नहीं पाए। ऐसा प्रतीत होता है-जन्म के साथ ही जम्बूकुमार में कुछ शक्तियां विकसित हो गईं। अन्यथा अकेला सामना कैसे कर पाता? उसमें कुछ शक्तियां/विद्याएं विकसित थीं। सैनिक पास में जाते हैं। वह केवल दोर्दण्ड-भुजा को उठाता है, सामने वाले सैनिक को उसका प्रहार बहुत तीक्ष्ण लगता है और वह धराशायी हो जाता है।
सब आश्चर्य में हैं। क्या बात है? यह कौन आ गया? क्या कोई दैवी-शक्ति है? चारों ओर सैनिक। बीच में जम्बूकुमार अकेला खड़ा है। सैनिक आक्रमण कर रहे हैं किन्तु उस पर कोई असर नहीं हो रहा है।
विद्याधर व्योमगति राजा मृगांक के प्रासाद में चिन्तन की मुद्रा में बैठा है। उसने सोचा-मैं जम्बूकुमार को अकेला छोड़ आया। अब स्थिति क्या है, पता करना चाहिए। अपने गुप्तचरों को बुलाया, कहाजाओ, खोज करो। एक कुमार है अत्यंत सुन्दर। वह कहां है? किस स्थिति में है? इसकी सूचना दो। __व्योमगति का निर्देश मिलते ही गुप्तचरों ने सारी स्थिति का पता किया। वापस केरला में पहुंचे। व्योमगति को सूचना दी–महाराज! युद्ध शुरू हो चुका है।'
व्योमगति ने विस्मय के साथ पूछा-'युद्ध किसने शुरू किया?' 'उस कुमार ने।'