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कर अपने ग्राम की तरफ प्रस्थान किया। वास्तव में आत्मसिद्ध महापुरुष कभी भी किसी कृतज्ञता ज्ञापन एव सराहना की अपेक्षा नहीं रखते । आचार्य श्री के चरित्र की यह जन्मजात विशेषता है कि वे आत्मप्रशंसा के प्रति सदैव उदासीन रहते आये हैं।
परम कारुणिक हृदय के बालगौड़ा उदार एवं सज्जन मनुष्य के रूप में अपने गांव में विख्यात रहे हैं। उनके जीवन का लक्ष्य परोपकार रहा है । अनेकानेक महानुभावों ने उनकी इस उदार मनोवृत्ति का उचित और अनुचित लाभ भी उठाया है । अन्य लोगों की स्वार्थ वृत्ति को जानते हुए भी वे करुणा-धर्म से कभी भी विचलित नहीं हुए। बचपन का ही एक दृष्टान्त है कि उनके कुटुम्ब में उनके एक काकाजी का विवाह धन के अभाव में नहीं हो पा रहा था। उन काकाजी के दो विवाह हो चुके थे, किन्तु दोनों पत्नियों की मृत्यु हो गयी थी। काकाजी का मन तब भी विवाह की लालसा से नहीं भरा था। किन्तु धन की कमी के कारण उनका विवाह नहीं हो पा रहा था। उन्हीं दिनों में बालगौड़ा के विवाह का प्रसंग चल रहा था। उन्होंने अपने विवाह प्रस्ताव को ठुकरा कर अपना मकान बेचकर प्राप्त धनराशि काकाजी को सादर भेंट कर दी ताकि वे अपना विवाह कर सकें ।
ज्ञान और वैराग्य
आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज के पूर्वजों का वंश राजवंश था। ये क्षत्रिय वंश की चतुर्थ जैन जाति में उत्पन्न हुए थे। चारित्रचक्रवर्ती आचार्य शांतिसागर जी महाराज के परिवार के साथ इनका पारिवारिक सम्बन्ध रहा है । बालगौड़ा जब ६ वर्ष के बालक थे तब परमपूज्य शांतिसागर जी महाराज ने अपनी क्षुल्लकावस्था में बालगौड़ा के घर में आहार इत्यादि ग्रहण किया। उस समय इस होनहार बालक के विकास की मंगलकामना भी महाराज श्री ने की थी। बालगौड़ा अपने प्रारम्भिक जीवन से ही परमहंस संन्यासी शुकदेव मुनि के अभिनय को अपने जीवन में गहराई से उतार चुके थे। उनकी भूमिका को वह प्रायः नाटकों मे आत्मसात् होकर मंच पर प्रस्तुत किया करते थे। साथ ही साथ मंच पर वे नारद मुनि एवं लिगायत साधुओं का भी अभिनय किया करते थे। इस प्रकार के अभिनय करते हुए उनका मन वैराग्य की ओर अग्रसर होने लगा। दुर्भाग्यवश विवाह के आठ दिन बाद ही इनको एक चाची की कुएँ में गिरकर मृत्यु हो गई थी। वह चाची अत्यन्त रूपवती एवं लावण्य से परिपूर्ण थी। परन्तु मृत्यु के उपरान्त उस शरीर के अन्दर मांसमज्जा, हड्डी इत्यादि अन्य घृणित पदार्थों को देख कर बालगौड़ा के वैरागी मन को गहरा आघात पहुँचा। उसी दिन से उन्होंने जीवनपर्यन्त साधनामय जीवन व्यतीत करने का संकल्प ले लिया। आचार्य श्री को उस समय यह अनुभूति हो चुकी थी कि जिस शरीर की सुन्दरता के संरक्षण के लिए हम जीवनभर प्रयत्न करते हैं; वह वास्तव में नश्वर, घृणित एवं अवांछित पदार्थों का एक संग्रह पात्र है। अतः आचार्य श्री का वैरागी मन साधना के पथ पर निरन्तर बढ़ने लगा।
संयोग की बात है कि उसी समय परम पूज्य आचार्य श्री पायसागर जी महाराज का भी कोथलपुर में मंगल-प्रवेश हुआ । बालगौड़ा उनके दर्शन की उत्कट इच्छा रखते थे परन्तु अपने साथियों की शरारत आदि के कारण महाराज के निकट जाने में सफल न हो सके । उनका वैरागी मन आचार्य पायसागर जी एवं उनके प्रवचनों पर मन्त्रमुग्ध हो चुका था।
। उसी समय गांव में कुछ भिश्ती मुसलमान नाटक का आयोजन कर रहे थे। उनमें से एक ने दिगम्बर मुनि का अभिनय करते हुए हाथ में मटका ले लिया और उसके साथी ने झाड़ ले ली। बालगोड़ा को जब इस घटना का पता लगा, तब उनका श्रद्धालु मन रोष से भर गया और उन्होंने दिगम्बर मुनि के अभिनय को भ्रष्ट रूप से प्रस्तुत करने वाले व्यक्तियों की प्रताड़ना की और गांव के पटेल की हैसियत से उन्हें गांव से निर्वासित करने का आदेश भी दे दिया। इस घटना से दिगम्बर मुनियों के प्रति उनका अपनत्व एवं श्रद्धालु भाव निरन्तर जागृत होता गया और एक दिन वे सभी संकोच तोड़कर अपनी काकी के साथ निकटवर्ती गलतगा गांव में पूज्य आचार्य पायसागर जी महाराज के दर्शन करने के लिए पहुँच ही गये । उनके चरण-कमल की वन्दना करके इनकी अतृप्त आत्मा को एक दिशा मिली और उन्होंने महाराज श्री के आदेश से सप्त-व्यसन का त्याग करके अष्ट मूल गुणों को प्रसन्नतापूर्वक ग्रहण कर अपने जीवन को मुक्ति-मार्ग की तरफ बढ़ाने का संकल्प लिया। उस दिन उन्हें अपने जीवन में पहली बार अद्भुत आह्लाद एवं आत्मसंतोष की अनुभूति हुई और उन्होंने अनुभव किया कि पूज्य आचार्य महाराज ने नियम इत्यादि प्रदान कर उनके जीवन को गौरवान्वित कर दिया है। इस घटना से बालगौड़ा के जीवन में एक अद्भुत परिवर्तन आ गया। उनका उद्धत एवं शरारती मन अब एक संस्कृतिनिष्ठ श्रद्धालु श्रावक के रूप में परिवर्तित हो गया। बालगौड़ा में इस आकस्मिक परिवर्तन को देख कर सारा गांव विस्मित था। वास्तव में जिन महानुभावों को अपने जीवन में कुछ असाधारण कार्य करने होते हैं, उनके जीवन में इस प्रकार की घटनाएँ प्राय: घटित हुआ करती हैं और उन्हीं घटनाओं से उनके चरित्र का विकास होता है।
कालजयी व्यक्तित्व
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