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श्री
समर्पण.
श्रीमदाचार्यवर्य पूज्यपाद गुरुवर्य
श्री १०८ शान्तिसागरजी (भोज) महाराजके पुनीत करकमलोंमें
भगवन् !
आपकी ही कृपासें मैं सांसारिकतृष्णा से मुक्त होकर मैने यह पवित्र रत्नत्रय धारण किया है तथा आपकी ही भक्ति प्रसादसे यह अत्यंत स्वल्परूपा विद्या प्राप्त की है और उसीका फल
स्वरूप यह ग्रंथ प्रगट हुआ है | इसलिये
मैं आपके ही पवित्र करकमलों में यह ग्रंथ समर्पण करता हूं और भावना रखता हूं कि आपके पवित्र चरण कमलोंकी भक्ति मेरे हृदय में सदा बनी रहे ।
चरणसरोरुहसेवीशिष्य निग्रंथ श्रीकुंथुसागर.