Book Title: Bodhamrutsar
Author(s): Kunthusagar
Publisher: Amthalal Sakalchandji Pethapur

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Page 268
________________ [२३७] कृपाप्रसादाद्धि सुधर्मनाम्नो, विद्यागुरोरेव दयार्द्रमूर्तेः ॥ १९. श्रीकुंथुनाम्ना मुनिना स्वबुध्द्या, स्वजन्ममृत्योश्च विनाशहेतोः। तथा परेषां सुखशांतिहेतो-, यथार्थधर्मस्य च बोधहेतोः ॥ २० नाम्ना हि बोधामृतसार एव, ग्रंथो मनोज्ञो रचितश्च भक्त्या । अज्ञानहर्ता निजबोधकर्ता, भेत्ता ध्रुवं क्रोधचतुष्टयस्य ॥२१॥ जन्ममरणरूप संसारको हरण करनेवाले और मोक्ष सुखको देनेवाले आचार्य श्रीशांतिसागरजी महाराज मेरे दीक्षा गुरु हैं तथा दयाकी मूर्ति ऐसे मुनिराज सुधर्मसागर जी महाराज मेरे विद्यागुरु हैं । इन्हीं दोनों गुरुओंकी कृपाके प्रसादसे मुझे कुंथुसागर मुनिने अपने जन्म मरण को नाश करने के लिए, अन्य जीवोंको सुख शांति प्राप्त करने के लिए और यथार्थ धर्मके ज्ञानका प्रचार करनेक लिए यह बोधामृतसार नामका ग्रन्थ अपनी बुद्धि के अनुसार बनाया है । यह ग्रन्थ अत्यंत मनोज्ञ है, अज्ञानको

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