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[१२३] करनेके लिये अथवा जनसंख्याको बढानेके लिये जिस किसी पुरुषका जिस किसी कन्याके साथ विवाह करा देते हैं तथा अन्यायसे धनोपार्जन करते हैं और लज्जाको छोडकर केवल पेट भरने के लिये जहां कहीं स्वादिष्ट और इच्छानुसार मिले हुए अन्नको खालेते हैं, वे मनुष्य साक्षात्' पतित हैं, पशु है और पापी हैं । ऐसे जीव दुर्गतिको पाकर महातीबदुःख सहन करते रहते हैं ॥२३३४-२३७॥ जनवृद्धिगुरो ! हेया कि लोके वद साम्प्रतम् ।
प्रश्नः-डे गुरो ! क्या इस संसारमें जनवृद्धि त्याग करने योग्य है कृपाकर यह बतलाइये । वृद्धिर्धार्मिकमानां वांछनीया सदा भुवि । सा तु धमोपदेशेन बोधामृतरसेन वा ॥२३८॥ मोक्षयोग्ये कुले कार्या जनवृद्धिः सदा नरैः । धर्मवाद्धः कदाचिन्नोत्पन्नर्विजातिसंकरैः ॥२३९
उत्तरः-इस संसारमें धार्मिक पुरुषोंकी वृद्धि सदा वाञ्छनीय है परंतु वह वृद्धि मनुष्योंको मोक्ष जाने योग्य कुलमें धर्मोपदेश देकर अथवा ज्ञानामृतके रसका पान कराकर करते रहना चाहिये । जो मनुष्य विजाति संकर उत्पन्न होते हैं उनसे धर्मवृद्धि कभी नहीं हो सकती ॥ २३८ ।। २३९ ॥