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[१२५] पालनीयश्चतुर्वर्गः श्रावकैरविरोधतः । यथा श्रावकवर्येण दयाधर्मादिमूर्तिना ॥२४॥ श्रीसत्यंधरपुत्रेण जीवकेन सुधीमता। सुन्यायनिपुणेनेव नृसिंहेन नृपेन्दुना ॥२४॥ ____ उत्तरः-धर्म अर्थ काम मोक्ष ये चारो पुरुषार्थ सुख देनेवाले हैं। इनको प्रयत्न पूर्वक और विरोधरहित सेवन करना चाहिये ऐसा भगवान जिनन्द्र देवने कहा है। जो लोग पूर्वोक्त क्रमको छोडकर इच्छानुसार इनका सेवन करते हैं वे योग्य गृहस्य नहीं कहलाते तथा वे संसारमें तिरस्कृत होते हैं। जो मनुष्य केवल धर्म पुरुषार्थको ही मुख्य मानते हैं और अर्थ वा काम पुरुषार्थको छोड कर सर्वोत्कृष्ट धर्मका ही सेवन करते हैं वे उत्तम भव्य मनुष्य दीक्षा लेकर परम तपश्चरण करते हैं और परम पुरुषार्थरूप मोक्षको सिद्ध करते हैं। तथा जो पापी मनुष्य धर्मको छोडकर केवल धनोपार्जन करते हैं वे मूल वा जडको उखाडकर इच्छानुसार मीठे फल खाना चाहते हैं । इसीगकार जो पुरुष धर्म और धन दोनोंको छोडकर केवल काम सेवन करते हैं वे इस संसारमें राजा सत्यंधरके समान शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं । इसलिये जिस प्रकार धर्ममें विरोध न आवे उसप्रकार धनको उपार्जन करना चाहिये । धन और धर्म दोनोंमें विरोध न आवे उसपकार