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१३९] मानापमानादिबहिःस्थिताना, सदा जिनाज्ञाप्रतिपालकानाम् । स्वात्माश्रितानां स्वसुखाश्रितानां, जातो हि कमोंदयतश्च विघ्नः ॥२८॥ भक्त्या मुनीनामपनीयते वा, सुरक्ष्यते यत्र यथार्थधर्मः । साधोः समाधिसः सुखार्पकोऽस्ति,
भव्यैश्च कार्यः सततं सुभक्त्या ॥२८२॥ जो मुनि मान अपमानसे अलग रहते हैं, भगवान जिनेन्द्रदेवकी आज्ञाका सदा पालन करते हैं, जो अपने आत्माके आश्रित रहते हैं अथवा आत्मजन्य सुखके आ-- श्रित रहते हैं ऐसे मुनियोंके धर्मकार्यमें यदि कर्मके उदयसे कोई विघ्न आजाय तो भक्तिपूर्वक उस विनको दूर करना और यथार्थ धर्मकी अच्छीतरह रक्षा करना सुख देनेवाली साधुसमाधि कहलाती है । यह साधुसमाधि भव्यजीवोंकी भक्तिपूर्वक सदा करते रहना चाहिये ॥ २८१ ॥ २८२ ।। . .
समस्तसंसारबहिःस्थितानां, यथार्थतत्त्वप्रतिपादकानाम् ।