Book Title: Bodhamrutsar
Author(s): Kunthusagar
Publisher: Amthalal Sakalchandji Pethapur

View full book text
Previous | Next

Page 246
________________ [२१५] प्रमाणं दशधा दिक्षु कार्यमामृत्यु गेहिभिः । संसारभोगकामार्थं न गच्छामि ततो बहिः ॥ इति संकल्प एव स्यादिवतं शांतिदायकं । प्रोक्तं जिनेंद्रदेवेन सर्वपापप्रणाशकम् ॥ ४८० ____ अनेक प्रकारके दुःख देनेवाले पापोंको रोकने के लिये श्रावकोंको अपने मरणपर्यन्त इसी पृथ्वीपरके नदी पर्वत और देशोंके द्वारा मर्यादा नियत कर दशों दिशाओंका परिमाण नियत कर लेना चाहिये तथा इस मर्यादाके बाहर संसार भोग और कामादिक के लिये कभी नहीं जाऊंगा ऐसा संकल्प कर लेना चाहिये । इसी संकल्पको वा दशों दिशाओंके परिमाण करनेको दिग्त्रत कहते हैं । यह दिग्वत अत्यंत शांति देनेवाला है, समस्त पापोंको नाश करनेवाला है और भगवान जिनेन्द्रदेवने कहा है ।। ॥ ४७८-४८० ॥ न चोर्ध्वातिक्रमः कार्यो नैवाधोऽतिक्रमस्तथा । तिर्यग्व्यतिक्रमो नैव क्षेत्रवृद्धिर्न दुःखदा ॥ ८१ नैवं विस्मरणं कार्यं मर्यादायाः सुगहिभिः । इति पंचातिचाराश्च त्याज्याः सकलधार्मिकैः ॥ समस्त धर्मात्मा श्रावकोंको ऊर्ध्व दिशा की मर्यादाका उल्लंघन नहीं करना चाहिये, अधोदिशाकी मर्यादाका

Loading...

Page Navigation
1 ... 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272