________________
(२१७]
आनयनाद्बहिर्देशात्प्रेष्यप्रयोगतस्तथा। । शब्दानुपाततो ज्ञेया रूपानुपाततोऽपि च ॥ ८५ पुद्गलादिप्रयोगाद्वातिचाराः पंच दुःखदाः। श्रावकैः परिहर्तव्या ज्ञात्वेति धर्मधारकैः ॥ ४८६ . मर्यादा किये हुए देशकै बाहरसे किसी को बुलाना वा कोई चीज मंगाना, किसी को भेजना वा कोई पदार्थ भेजना, मर्यादा बाहर अपने शब्दके द्वारा कोई संकेत करना, अपना रूप दिखाकर कोई संकेत करना और पुद्गल वा कंकड, पत्थर फेंककर कोई संकेत करना ये पांच देशावकाशिकवतके अतिचार हैं । धर्मको धारण करनेवाले श्रावकोंको इनका स्वरूप समझकर इनका त्याग अवश्य कर देना चाहिये ॥ ४८५॥४८६ ॥ पापशिक्षामपध्यानं हिंसादानं च दुःश्रुतिः । प्रमादाचरणं कार्यं श्रावकैस्तु कदाऽपि न ॥८७ धर्मविरुद्धं यत्कार्यं कुलजातिविनाशकं । न कार्य तत्तु विज्ञेयं तृतीयं च गुणवतम् ॥ ८८
श्रावक लोगोंको पापरूप शिक्षा वा उपदेश कभी नहीं देना चाहिये, अपध्यान अर्थात् किसीके लिये बुरा चिन्तन नहीं करना चाहिये, हिंसा करनेके साधनोंको