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वस्त्र, स्त्री, गंध, माला. सवारी, गीत, नृत्य आदि भोगोभोग पदार्थो का प्रतिदिन प्रमाण कर लेना चाहिए । इसको भोगोपभोग परिमाण व्रत कहते हैं ||५००/५०१ ॥
सचित्तस्तस्य सम्बंधः सम्मिश्राभिषवस्तथा । दुष्पकाहार एवाऽपि दुःखदो व्रतनाशकः ॥ ५०२ प्रोक्ताः पंचातिचाराश्च संसारपरिवर्द्धकाः । ज्ञात्वेति वस्तुतो भव्यैस्त्यक्तव्या मोक्ष हेतवे ॥
सचित्त पदार्थो को काम में लाना, सचित्तसे संबंध रखनेवाले पदार्थोंको काममें लाना, सचित्त मिले हुए पदार्थोंको काममें लाना, पौष्टिक आहारका सेवन करना और कच्चे अथवा आवश्यकता से अधिक पके हुए पढ़ाथको सेवन करना ये पांच भोगोपभोग परिमाणके अतिचार हैं । ये अतिचार दुःख देनेवाले हैं, व्रतों को नाश - करनेवाले हैं और संसारको बढानेवाले हैं । अतएव भव्य जीवोंको उचित है कि इनका वास्तविक स्वरूप समझकर मोक्ष प्राप्त करने के लिए इनका सर्वथा त्याग कर देवें । १५०२-५०३॥
आत्मरताय भव्याय गृहादिवर्जिताय च । रागद्वेषविमुक्ताय स्वपरहितहेतवे ॥ ५०४