Book Title: Bodhamrutsar
Author(s): Kunthusagar
Publisher: Amthalal Sakalchandji Pethapur

View full book text
Previous | Next

Page 257
________________ [२२६] अष्टम्यां च चतुर्दश्यां कर्तव्यो निश्चयेन च । यथाशक्त्त्युपवासश्च कामदो मोक्षहेतवे ॥ ५१४ चिदानन्दपदे शुद्धे स्वात्मनि सुखदे सदा । उपवेशनमेव स्यादुपवासश्च मोक्षदः ॥ ५१५ ____अब चौथी प्रतिमा का स्वरूप कहते हैं, चौथी प्रतिमा धारण करने वाले श्रावकको अष्टमी और चतुर्दशी के दिन सर तरह के आरंभोंका त्याग कर तथा चारों प्रकारके आहारोंका त्याग कर और संसारके महादुःख देने वाले कपाय तथा विषयोंका त्याग कर मोक्ष प्राप्त करनेके लिए अपनी शक्ति के अनुसार इच्छानुसार फल देनेवाला उपवास अवश्य करना चाहिए । अथवा शुद्ध चिदानंद स्वरूप और सुख देनेवाले अपन आत्मामें तल्लीन रहना मोक्ष देनवाला उपवास कहलाता है। यह भी श्रावकको धारण करना चाहिए । इसको प्रोषधोपवास प्रतिमा कहते हैं ॥१३-१५॥ फल नूलादिकानां चापक्कानां ह्यनलादिभिः। न कार्य भक्षणं भव्यैर्दयाधर्मप्रवर्द्धकैः ॥ ५१६ लिजपरात्मशान्त्यर्थं पंचाक्षरोधहेतवे । स्वर्मोक्षवाञ्छकैर्भव्यैः स्वरसरसिकैः सदा ॥५१७ जो पुरुष स्वर्ग मोक्ष की इच्छा करनेवाले भव्य है, दयाधर्मको बढानेवाले हैं और आत्मजन्य आनंदरस के

Loading...

Page Navigation
1 ... 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272