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क्रमसे आचार्य पद प्राप्त किया है । वेही आचार्य श्री शान्तिसागर मेरे दीक्षागुरु हैं और वे मेरे दीक्षागुरु आचार्य शान्तिसागर इस पृथ्वीपर जबतक चन्द्र और -नक्षत्रगण रहे तबतक जयवंत रहें ।। ३-४॥
मुमुक्षुस्तस्य शिष्योऽहं मुनिः श्रीकुंथु सागरः । अन्ये च बहवः शिष्याः संजातास्तस्य योगिनः॥
अर्थ : - मोक्षकी इच्छा रखनेवाला मैं मुनि श्री कुंथु सागर उन्हीं आचार्य शान्तिसागरका शिष्य हूं । उन आचार्यके मेरे सिवाय और भी बहुतसे शिष्य हैं ॥५॥ श्री वीरसागरो विद्वान् गुणज्ञौ मिसागरौ । श्रीचन्द्रसागरो योगी दयालुः पायसागरः ॥ ६ नमिसागर योगीशो मुमुक्षुरादिसागरः । स्मार्तो वक्ता तपस्वी च मुनि: सुधर्मसागरः ॥७
विद्वान् वीरसागर, अनेक गुणोंको जानने वाले दोनों नेमसागर, योगिराज चन्द्रसागर, दयानिधि पायसागर योगराज नमिसागर, मोक्षकी इच्छा रखनेवाले आदि सागर और स्मृति शाखोंके ज्ञाता परम वक्ता तथा तपस्वी सुनिराज सुधर्मसागर आदि अनेक उनके शिष्य हैं ॥ ६-७ ॥ मध्यभारतदेशस्थचावलीग्रामवासिनः ।
तोतारामस्य मेवाया धर्मज्ञो वरनन्दनः ॥ ८