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आहार लेता है, गुरुकुलमें ही निवास करता है तथा ध्यान स्वाध्याय और सब प्रकार से अपने आत्माको शुद्ध करने का साधन किया करता है उसको उद्दिष्टाहार त्यागी उत्तम श्रावक कहते हैं । यह ग्यारहवीं प्रतिमा का स्वरूप है । ।। ३०-३२ ।।
इति श्रीमुनिराजकुंथूसागरविरचित बोधामृतसारग्रंथे श्रावकधर्मवर्णनो नाम चतुर्थोऽधिकारः ।