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[२२७] रसिक हैं उनको पंचेंद्रियोंका निरोध करनेके लिए, और अपनी आत्माको तथा अन्य समस्त जीवोंको शान्ति प्राप्त करनेके लिए अग्नि आदिके द्वारा नहीं पके हुए फल पत्र मूल आदिको कभी भक्षण नहीं करना चाहिए। इसको सचित्त त्याग नामकी पांचवी प्रतिमा कहते हैं ।।१६-१७॥ मनोवचनकायैश्च कृतकारितसम्मतः । दिवसे मैथुनं त्याज्यं दु:खदं निशि भोजनम् १८ शान्तिवैराग्यवृध्द्यर्थं स्वात्मचिंतनमेव च व्रतं स्वर्मोक्षदं स्याद्धि रात्रिभोजनवर्जनम् ५१९
छठी प्रतिमा धारण करनेवालोंको मन, वचन, काय और कृत कारित अनुमोदनासे दिनमें मैथुनसेवन करनेका त्याग कर देना चाहिए और महादुःख देनेवाला रात्रिभोजनका त्याग कर देना चाहिए। तथा शांति और वैराग्यको बढाने के लिए अपने आत्माका चिन्तन करना चाहिए । इसको स्वगमोक्ष देनेवाला रात्रिभोजन त्याग नामका व्रत कहते हैं। इसको पालन करना छटी प्रतिमा है ॥१८-१९॥ समस्तयोषिन्मात्रं च त्यक्त्वा वाकायचेतसा। तदतिचारमेवाऽपि संसारपरिवर्द्धकम् ॥ ५२० चिदानन्दमये शुद्धे परमात्मनि सौख्यदे। खात्मबाह्यजनासाध्ये रत्नत्रयमये पदे ॥ ५२१