Book Title: Bodhamrutsar
Author(s): Kunthusagar
Publisher: Amthalal Sakalchandji Pethapur

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Page 249
________________ [२१८] देना नहीं चाहिये, पाप उत्पन्न करनेवाले शास्त्रोंको सुनना नहीं चाहिये और बिना प्रयोजन पृथ्वी खोदना, पानी फैलाना, अग्नि जलाना, वनस्पति तोडना आदि जीवोंको सतानेवाले कार्य नहीं करना चाहिये । इसीप्रकार जो धर्मरुद्ध कार्य है अथवा कुल जातिको नष्ट करनेवाले कार्य हैं वे भी कभी नहीं करने चाहिये । इसको तीसरा अनर्थदंडविरति नामका तीसरा गुणव्रत कहते हैं ।। ४८७ ||४८८ ॥ निंद्यं कन्दर्पकौत्कुच्यं मौखर्यं पापवर्द्धकं । उपयोगोऽविचायैव भोगोपभोगवस्तुनः ॥ ४८९ अप्रयोजनभूतस्य संग्रहकरणं तथा । ज्ञात्वा पंचातिचाराश्च त्याज्या एवं प्रयत्नतः ॥ हंसी से मिले हुए भंड वचनों को कंदर्प कहते हैं भंड वचनोंके साथ शरीर की कुचेष्टा करना कौत्कुच्य है ये दोनों ही क्रियाए अत्यंत निंदनीय हैं। विना प्रयोजन बहुत बोलनेको मौखर्य कहते है । मौखर्य भी पाप बढानेवाला है। इस प्रकार तीन तो ये, तथा भोगोपभांग के पदार्थोंका विना विचार किये उपयोग करना और अपने काममें न आनेवाले बहुत से पदार्थोंका संग्रह करना ये पांच अनर्थदंडवत के अतिचार हैं इनको समझकर प्रयत्न पूर्वक इनका त्याग कर देना चाहिये ||४८९ ||४९०॥

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