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उल्लंघन नहीं करना चाहिये, तिरछी और की आठों दिशाओंकी मर्यादाका उल्लंघन नहीं करना चाहिये, मर्यादा किये हुए क्षेत्रको बढाना नहीं चाहिये और मर्यादा को भूलना नहीं चाहिये । भावार्थ - ऊर्ध्व अधो और तिर्यग दिशाओंका उल्लंघन करना, क्षेत्रकी मर्यादा बढालेना और मर्यादा भूल जाना ये पांच दिखतके अतिचार हैं । धर्मात्मा श्रावकको इनका त्याग अवश्य कर देना चाहिये ।। ४८९ ॥ ४८२ ॥
पक्षमासादिपर्यन्तं गृहग्रामवनैः सदा । मर्यादकृत्य देशस्य परिमाणं सुगेहिभिः ॥ ४८३ कार्य प्रतिदिनं तत्तु तं देशावकाशिकं । सर्वपापविनाशार्थमहिंसात्रतवृद्धरे ॥ ४८४ ॥
श्रावकों को पक्ष महिना आदि काल की मर्यादा नियत कर घर गांव बगीचा आदिके द्वारा देशकी मर्यादा नियत कर प्रतिदिन उस देशका परिमाण नियत कर लेना चाहिये । भावार्थ - दिग्नतमें जो जन्मभर के लिये मर्यादा नियत की है उससे प्रतिदिन घटाकर थोडी रखनी चाहिये | इसको देशावकाशिक व्रत कहते हैं यह व्रत समस्त पापोंको नाश करनेके लिये और अहिंसाव्रत की वृद्धि करनेके लिये किया जाता है ।। ४८३-४८४ ॥