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[२१३] परिणीतेत्वरिकाया गमनं भववर्द्धकं । तथैवापरिणीताया अन्यस्योपशमस्तथा ॥ ४७२ न कार्य कामतीवाभिनिवेशं पापकारणं । स्वानंदवादकैः कार्याऽनंगक्रीडा कदापि न ॥७३
किसी विवाही हुई कुलटा स्त्रीके यहां आना जाना, 'बिना विवाही हुई कुलटा स्त्रीके यहां आना जाना, दूसरे के पुत्र पुत्रियोंका विवाह करना, कामसेवनके तीव्रभाव रखना और अनंगक्रीडा करना ये पांच ब्रह्मचर्याणुव्रतके अतिचार है। ये पांचोंही अतिचार संसारको बढानेवालं हैं और पाप उत्पन्न करनेवाले हैं। अतएव अपने आत्मजन्य आनंदका स्वाद लेनेवाले भव्य जीवोंको इन सबका त्याग कर देना चाहिये । इन आतचारों को कभी नहीं लगने देना चाहिये ॥ ४७२-४७३ ॥ प्रमत्तयोगतो यत्र धनधान्यादि गृह्यते । परिग्रहो ध्रुवं तत्र भवेत्स्वर्मोक्षनाशकः ॥ ७४ ज्ञात्वेति धार्मिकैभव्यैर्न ग्राह्यं परवस्तु च । खवस्तुपरिमाणं च कर्तव्यं मोक्षहेतवे ॥ ४७५
जहांपर प्रमादके निमित्तसे धन धान्यादिक का ग्रहण किया जाता है वहांपर उसको परिग्रह कहते हैं । यह