________________
०
[२०३] श्रावकः पाक्षिकः कोऽसौ गुरो! मे वद साम्प्रतम् ?
प्रश्न:-हे गुरो ! अब मेरे लिए कहिए कि पाक्षिक श्रावक किसको कहते हैं ? विनष्टघातिकर्मत्वाल्लोकालोकादिबोधनात् । स्वप्रदेशे स्थिरत्वाद्धि तृप्तत्वात्स्वचतुष्टये ॥३९॥ अर्हन्नेव भवेद्देवो यो वा स्वमोक्षदायकः । श्रद्धेति निश्चयो यस्य धर्मज्ञः स च पाक्षिक: ४०
उत्तर- भगवान अरहंत देवने अपने समस! धाति कमौका नाश करदिया है, लोक अलोक का तथा समस्त पदार्थोका प्रत्यक्ष ज्ञान उत्पन्न कर लिया है, वे अपने आत्मप्रदेशों में ही सदा स्थिर रहते हैं और अपने ही चतुटय में सदा तृप्त रहते हैं इसी लिए वे अरहंत भगवान देव कहलाते हैं, तथा वे ही भगवान स्वर्ग मोक्षको देनेवाले हैं। जिस किसी पुरुषके इस प्रकारकी श्रद्धा वा निश्चय है उस धर्मात्मा पुरुषको पाक्षिक श्रावक कहते हैं ३९-४० ज्ञानध्यानक्षमादक्षः स्वानन्दास्वादाकः सदा। तरणे तारणे शक्तो निरारंभोऽपरिग्रहः ॥४४१॥ वंद्यः पूज्यः सदा सेव्यो निग्रंथो गुरुरेव हि । श्रद्धेति निश्चयो यस्य धर्मज्ञः स च पाक्षिकः४२