Book Title: Bodhamrutsar
Author(s): Kunthusagar
Publisher: Amthalal Sakalchandji Pethapur

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Page 239
________________ [२०८] जो धीर वीर पुरुष अपने शुद्ध आत्माको सिद्ध करने वाला पांचों अणुव्रतोंको धारण करता है तथा अपने आस्माके समान सदा काल अतिचारहित उनकी रक्षा करता है, इनके सिवाय जो अणुव्रतोंको बढाने वाले गुण व्रतों को सदाके लिए धारण करता है, जो मुनियों के व्रतोंकी शिक्षा देते हैं ऐसे चारों शिक्षा व्रतोंको धारण करता है और जो अपने हाथ में सदा भेदविज्ञानरूफ शास्त्रको धारण करता रहता है । उस धार्मिक श्रावक को दूसरी व्रत प्रतिमा को धारण करनेवाला कहते हैं ॥४५६-४५८।। अणुव्रतानि कानीह गुणशिक्षात्रतानि च । के वा तेषामतीचारा भो गुरो वद साम्प्रतम् ? ।। प्रश्नः--हे गुरो ! अब यह बतलाइये कि इस संसार में पांच अणुव्रत कौन २ हैं तीन गुणत्रत कौन २ हैं और चार शिक्षाव्रत कौन २ है, तथा उन सब व्रतोंके अतिचार कौन २ हैं। जीवानां द्रव्यभावानां प्राणानां द्वेषरागतः। व्यपरोपणमेव स्याद्धिंसा स्वात्मविनाशिनी ॥५९॥ ज्ञात्वेति प्राणिनां कार्यं न प्राणव्यपरोपणम् । तदाहिंसाव्रतं पूतं भवेद् वाञ्छितदं क्रमात् ॥६॥

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