________________
[१७] वस्तुओंकी इच्छा करने की तो बात ही क्या है। इसमकार तपश्चरणक स्वपरूको अच्छी तरह समझकर किसीका भी मद नहीं करना चाहिये फिर भला तपश्चरणके मदकी तो बात ही क्या है। तपश्चरणका मद तो कभी नही करना चाहिये ॥ ३७१ ॥ ३७२ ॥
इति श्रीमुनिराजकुथुसागरविरचिते बोधा- . मृतसारग्रंथे षोडशकारणभावनादशधर्मपूर्णांगसम्यग्दर्शनवर्णनो नाम
द्वितीयोऽधिकारः।
इस प्रकार मुनिराज श्रीकुंथुसागरविरचितबोधामृतसार नामक ग्रंथमें सोलहकारण भावना । दश धर्म और पूर्णाग सम्यग्दर्शनको वर्णन ..करनेवाला यह दुसरा अधिकार
. समाप्त हुआ ।