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अन्नौषधादिदानाद्वा मदादिदोषनाशतः । स्वर्मोक्षसाधकः कायो भवेद् ज्ञात्वेति सुन्दरः॥ ज्ञानध्यानतपोधर्मे योजनीयोऽतियत्नतः । वपुर्मदो न वै कार्यः कदापि भवभीरुभिः ॥ ३७०
इस संसारमें स्वर्गमोक्षको सिद्ध करनेवाला सुन्दर शरीर अन्न औषध आदिके दान देनेसे और मद आदि दोषोंको नाश कर देनेसे प्राप्त होता है । यही समझकर संसारसे भयभीत रहनेवाले भव्य जीवोंको यत्नपूर्वक अपना शरीर ज्ञान, ध्यान, तप और धर्ममें लगाना चाहिये। तथा अपने प्राण जानेपर भी शरीरका मद कभी नहीं करना चाहिये || ३६९ ॥ ३७० ॥
इच्छारोधस्तपश्चिह्नं प्रोक्तं स्वर्मोक्षदायकैः । मोक्षेच्छापि जिनैः प्रोक्ता स्वर्मोक्षध्वंसिका ध्रुवं ॥ कथा तवान्यवस्तूनां केति बुद्ध्वा सुतत्त्वतः । केषामपि मदः कार्यो न केवलं तपोमदः ॥३७२॥
स्वर्गमोक्षको देनेवाले भगवान जिनेन्द्रदेवने इच्छाका निरोध करना ही तपश्चरणका लक्षण बतलाया है । भगवान जिनेन्द्रदेवने मोक्षकी इच्छा करना भी स्वर्गमोक्षकी नाश करनेवाली बतलाई है । फिर भला अन्य