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आदि न किया जा सके ऐसे कुलमें जन्म होता है। " मैं अपने अभिमानके दोषसे इस पृथ्वीपर अनंतवार कुयोनिमें उत्पन्न हुआ हूं" यही समझकर संसारके परिभ्रमणसे डरनेवाले भव्य जीवोंको अपने उच्चकुलका मद कभी नहीं करना चाहिये ॥ ६१ ।। ६२ ॥ दानादिधर्मकार्येणार्हदादिजन्मदायिनी। श्रेष्ठा जातिर्भवेल्लोके ज्ञात्वेति भवभीरुभिः॥६३॥ जात्या मदो न वै कार्यों मानवैर्दुष्टहेतुना । धर्मकार्यं सदा कार्य श्रेष्ठा जातिर्भवेद्यतः ॥६॥
. इस संसारमें भगवान अरहंत देवको जन्म देनेवाली श्रेष्ठ जाति पात्रदान आदि धर्मकार्यासे ही उत्पन्न होती है । यही समझकर संसारके भयभीत रहनेवाले भव्य जीवोंको अपने प्राण जानेपर भी किसी भी दुष्ट कारणसे जातिका मद नहीं करना चाहिये । तथा सदा काल धर्मकार्य ही करते रहना चाहिये जिससे कि सदा श्रेष्ठ जाति ही प्राप्त होती रहे ।। ३६३ ॥ ३६४ ॥ मदादिदोषनाशाद्वा वीर्यान्तरायकर्मणः । क्षयाबलं भवेच्छेष्ठं तपोध्यानादिसाधकम् ॥३६५ ज्ञात्वेति योजनीयं हि धर्मे जीवादिरक्षणे । हिंसने नैव जीवानां कार्यों बलमदोऽपि च॥६६॥