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., कीहक् कार्य गुरो ! लोकेऽनुप्रेक्षाचिन्तनं सदा ?
___ प्रश्नः-हे गुरो ! इस संसारमें सदा काल अनुप्रेक्षाओंका चिन्तन किस प्रकार करना चाहिए ? सर्वे पुण्यवशाः सन्ति धनराज्यादिबांधवाः । यावत्पुण्यं समं तावत्तिष्ठन्ति बंधुभावतः ॥३७३ तस्य क्षयात्पलायन्ते खगा इव तरुस्थिताः। नित्यः स्वात्मैव बोद्धव्योऽन्येऽनित्याः सकला इति। ___इस संसारमें धन, राज्य, भाई बंधु आदि सब पुण्यके अधीन हैं, जबतक पुण्य का उदय रहता है तबतक सब भाई बंधुके प्रेमसे बने रहते हैं। जब उस पुण्यका क्षय हो जाता है तब वृक्षपर बैठे हुए पक्षियोंके समान सब भाग जाते हैं । इसलिये भव्य जीवोंको विचार करना चाहिये कि इस संसारमें एक अपना आत्मा ही नित्य है बाकीके समस्त. पदार्थ अनित्य हैं इस प्रकारके चिंतन करनेको अनित्यानुप्रेक्षा कहते हैं ॥ ७३ ॥ ७४ ॥ गजाश्वमंत्रतंत्रादिविद्यागदकलादिकाः । यझेंद्रचक्रवर्त्याद्या मृत्युकाले न केऽप्यमी ७५ रक्षति यदि चेत्पाति ज्ञात्वेति पुण्यमेव हि । स्वात्मनः स्वात्मना रक्षा कार्या खानन्दसाधकैः ।।