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[१९४] सर्वदुष्कर्मणां स्वामी द्यूत एवास्ति तत्त्वतः । त्याज्यो ज्ञात्वेति स द्यूतः सर्वथा स्वात्मतत्परैः ॥
उत्तरः- पहला व्यसन जुआ खेलना है । यह जुआ खेलना समस्त पापोंका स्थान है, समस्त चिन्ताओं का और समस्त आपत्तियों का स्थान है, समस्त व्याधियोंका स्थान है, समस्त दुःखीका स्थान है, मूर्खता का चिन्ह है और समस्त पापकर्मो का स्वामी है । वास्तवमें यह जूआ ऐसा ही है । यही समझकर अपने आत्मामें तल्लीन रहनेवाले भव्य पुरुषों को इस आका सर्वथा त्याग कर देना चाहिये || ३१३ ॥ ११४ ॥ सद्धिमसलुब्धानां दयाधर्मः पलायते । पुण्यपापविचारोऽपि न्यायनीतिर्विनश्यति ४१५ मूर्खता वर्द्धतेऽशांतिर्ज्ञात्वेति मांसभक्षणम् । स्पर्शनं वापि धर्मज्ञैर्न कार्यं धर्मवत्सः ॥१६॥
दूसरा व्यसन मांसभक्षण है । जो मनुष्य मांस भक्षणके लोलुपी हो जाते हैं उनकी सद्बुद्धि नष्ट हो जाती है, दयाधर्म दूर भाग जाता है, पुण्यपापका विचार नछु हो जाता है, न्याय और नीति नष्ट हो जाती है, मूर्खता बढ जाती है और अशांति बढ जाती है । यही समझकर धर्ममें प्रेम रखनेवाले और धर्मके स्वरूपको जाननेवाले