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करना छह अनायतन हैं और देव शास्त्र गुरु तथा उनके भक्तोंको सेवा भक्ति करना छह आयतन हैं।
भो गुरो ! कथनीयानि मदानां लक्षणानि च ? प्रश्नः—हे गुगे ! अब कृपाकर मदोंके लक्षण कहिये ? स्थापनात्पाठशालानां पठनात्पाउनात भवेत्। ज्ञानोपकरणादेर्वा दानाद् ज्ञानं शिवप्रदम् ।। ज्ञात्वेति ज्ञानदानं हि कार्यं निःस्वार्थतः सदा । प्राणेष्वितेष्वपि ज्ञानगर्वः कार्यों न हानिदः ५७
उत्तर:-पाठशालाओंके स्थापन करनेसे तथा भगवान जिनेन्द्रदेवके कहे हुए शास्त्रोंके पठन पाठन करनेसे अथवा ज्ञानके उपकरणोंका दान देनेसे मोक्ष देनेवाला आत्मज्ञान प्रगट होता है । यही समझकर भव्य जीवोंको अपनी निःस्वार्थ बुद्धिसे सदा ज्ञानदान करते रहना चाहिये तथा अपने प्राणांका नाश होनेपर भी संसारको बढानेवाला ज्ञानका मद कभी नहीं करना चाहिये ।।३५६॥३५७|| कुर्वन्ति स्वात्मशुन्या हि पूजामदं भवप्रदम् । सन्तः स्वानन्दपुष्टा न ते जानन्ति निजात्मनः॥ पूजा प्रतिष्ठा लोकेस्मिन् पुरोदयेन लभ्यते। धर्मः परोपकारो वा कर्तव्यः प्राप्य तां शुभाम्५९