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रत्नत्रयेणापि विभूषितश्च, सर्वस्य जन्तोरभयप्रदो हि ॥ ३२२|| ज्ञात्वेति कये जिनधर्ममागें, श्रद्धां प्रकुर्वन्ति सदा ह्यकंपाम् । निःशंकितांगं विमलं च गाढं, दृष्टेर्भवेदंजनचौरवद्वा ॥ ३२३॥
उत्तर: – इस संसार में सुख देनेवाला और पवित्र मोक्षमार्ग भगवान जिनेंद्रदेवका कहा हुआ है क्योंकि वही निर्दोष है, रत्नत्रय से विभूषित है और समस्त प्राणियोंको अभय देनेवाला है । यही समझकर इस संसार में जो भव्य 'जीव भगवान् जिनेन्द्रदेव के कहे हुए इस धर्ममार्ग वा मोक्षमार्ग में अटल श्रद्धान रखते हैं उनके ही अंजनचौरके समान निर्मल और गाढ ऐसा सम्यग्दर्शनका निःशंकित नामका पहला अंग होता है || ३२२ ।। ३२३ ।।
निजात्मवाद्ये क्षणिके च भीमे, क्लेशादिपूर्ण परतश्च जाते । त्यक्ते च निंद्ये सुनिजात्मनिष्ठै-, रादौ प्रिये वा कटुके हि चान्ते ॥ ३२४ ॥