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[ १४५] छहों आवश्यक सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्रको बढानेवाले हैं, समस्त दोषोंसे रहित हैं और मोक्षक परम सुखको देनेवाले हैं । ऐसे ये छही आवश्यक अपने आत्मजन्य स्वराज्य प्राप्त करनेकेलिये सबतरहके प्रमाद और कार्योके छोड कर शास्त्रोंके अनुसार कहे हुए नियत समयपर समतारूप तथा शांत परिणामोंसे जहांपर सदा किये जाते हैं उनको आवश्यक कहते हैं । शास्त्रोंमें कहे हुए छहों आवश्यक भव्य जीवोंको अपने कर्म नष्ट करनेके लिये और तपश्चरणको बढानेके लिये अवश्य करते रहना चाहिये ॥ २९३ ॥ २९४ ॥
पूजाप्रतिष्ठाचरणैः पवित्रै-, बोधामृतैः क्लेशविनाशकैवी । विद्याकलाभिर्जिनमंत्रतंत्रैः, प्रवर्तनैवेति मिथोऽविरोधैः ॥२९५॥ धनादिदानैर्जिनधर्मवृद्धि-, व्रतोपवासैः क्रियते च यत्र। प्रभावना सैव सुखस्य दात्री,
धर्मस्य कार्या सततं सुभव्यैः ॥२९६॥ पवित्र पूजा करके, प्रतिष्ठा करके, सदाचरण पालन करके, समस्त क्लेशोंको दूर करनेवाले आत्मजन्य ज्ञानामृत