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पुरुष देव शास्त्र गुरुका तिरस्कार वा उनकी निंदा करता है, अथवा जिनधर्म धारण करनेवाले चारों प्रकारके संघ की निंदा वा उनका तिरस्कार करता है अथवा कोई मनप्य चैत्य चैत्यालय आदिकी निंदा वा तिरस्कार करता है उसे सुनकर वा यथार्थ रूपसे देखकर भी ये उदासीन बने हुए प्रतिमाधारी मनुष्य क्षमा वा मौन धारण कर लेते हैं। उदासीन होकर उसकी प्रति क्रियासे उदास हो जाते हैं ऐसे लोगोंको जिनधर्मसे चाय और मिथ्यात्व कर्मसे घिरे हुए समझना चाहिये । ऐसे लोग इस पृथ्वीपर अभिमान में डूबकर ऊंटके समान ऊपरको ग्रह उठाकर रहते हैं और प्रायः पापी होते हैं । अथवा ऐसे लोग मुनि होकर भी न स्वाध्याय करते हैं न अपने आत्माका चिंतन करते हैं और न समस्त क्रेशों को दूर करनेवाले अपने आत्मजन्य आनंदामृतरसका पान करते हैं । किंतु मुनि होकर भी दुःख बढाने वाले गृहस्थों के योग्य कार्य किया करते हैं । इसी प्रकार वे पापी लोग वैर विरोध बढानेवाले कार्य किया करते हैं । उन्हें भी अपने आत्मजन्य ज्ञानसे बाहर और मिथ्यात्व कर्म से घिरे हुए समझना चाहिये। समस्त जीवों का हित करनेके लिये और इस प्रकारकी अनवस्थाका नाश करनेके लिये तथा शिष्ट पुरुषों की पुष्टि करनेके लिये अत्यंत
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