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[१२६] कामका सेवन करना चाहिये । श्रावकोंको जिसप्रकार परस्पर विरोध न आवे उसप्रकार इन पुरुषाौँका सेवन करना चाहिये । जो राजा जीवंधर उत्तम श्रावक था, दयाधर्म की मूर्ति था, बुद्धिमान था, मनुष्योंमें श्रेष्ठ था, राजाओंमें चन्द्रमाके समान था, श्रेष्ठ न्यायमें निपुण था और राजा सत्यंधरका पुत्र था, उसने जिसप्रकार इन पुरुषार्थों का सेवन कर अंतमें मोक्षपुरुषार्थ सिद्ध करलिया था उसीप्रकार सबको सेवन करना चाहिये ॥ २४०-२४८ ॥
कार्य स्वास्पदयोग्यं वा ये कुर्वति न कीदृशाः?
प्रश्नः-जो पुरुष अपने पदके योग्य कार्य को नहीं करते हैं वे कैसे हैं ? स्वपदव्यनुसारेण जिनाज्ञाप्रतिपालकाः । कुर्युः क्षमादिधर्म हि दानं पूजां तपो जपम् ॥ त्यागं ध्यानोपवासं च वेषाद्याभूषणं पुनः । अवश्यं पालयेयुश्चाहिंसादिवतमुत्तमम् ॥२५०॥
खैरवृत्तिविनाशार्थं पूर्वाचार्या दयालवः । सर्वेषां हितहेतोश्च कथयन्ति मनीषिणः ॥२५१॥ मिथ्याज्ञानग्रहैय॒स्ता आचार्योक्तवचोऽपि ये ।