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जिनधर्मविहीनस्य किं क्रिया सफला भवेत् ? .... प्रश्नः-जो मनुष्य जिनधर्मसे रहित है, क्या उसकी क्रियाएं सपाल मानी जाती हैं ?
न भाति जीवो जिनधर्मबाह्यः, स्वात्मानुभूत्या स्वरसेन शून्यः । क्रिया कला वा विफलैव तस्य,
भक्तिश्च शक्तिश्च भवेद्विनष्टा ॥८४॥ . उत्तरः-जो मनुष्य जिनधर्मसे रहित है, अपने आत्मासे उत्पन्न हुई अनुभूतिसे रहित है और आत्मासे उत्पन्न हुए आनन्दामृत रससे रहित है वह मनुष्य कभी शोभा नहीं पाता, तथा उसकी क्रियाएं और कलाएं सब निष्फल हो जाती हैं और उसकी शक्ति तथा भाक्त दोनों नष्ट हो जाती हैं ॥ ८४ ॥ किमर्थ मौनमाधत्ते कश्च वा वक्ति तापसः ?
प्रश्न:-तपस्वी लोग किस लिए तो मौन धारण करते हैं और किस प्रकार बोलते हैं ?
स्वात्मार्थसिध्यै खलु मौनमेव, दधाति साधुर्यदि वा ब्रवीति ।