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[ ८६] प्रश्न:-हे गुरो ! अब यह बतलाइये कि स्वर्गगति में कैसा जीव जाता है ?
भोगाच्छरीराच्च भवाद्विरक्तो, देशव्रती वा सकलव्रती वा। सम्यक्त्वयुक्तश्चरमांगहीनः, स्वाध्यायलीनस्तपसा प्रयुक्तः ॥१५५॥ निजात्मशुद्धिं स्वपरोपकारं, कर्तुं सदा संयतते प्रयत्नात् । पूर्वोक्तभावैरिति यश्च युक्तः,
स एव भव्यो भुवि नाकगामी ॥१५॥ उत्तरः-जो मनुष्य संसार शरीर और भोगोंसे विरक्त है, जो देशव्रती है वा सकलव्रती है, जो सम्यग्दर्शनसे सुशोभित है, परंतु जो चरमशरीरी नहीं है, जो स्वाध्यायमें लीन रहता है, तपश्चरणसे सुशोभित है और जो अपने आत्माकी शुद्धि, अपने आत्माका कल्याण तथा अन्य जीवोंका कल्याण करनेके लिये प्रयत्न पूर्वक सदा उद्योग करता रहता है । इस प्रकार जो ऊपर लिखे शुभ भावोंसे सदा सुशोभित रहता है वही भव्य स्वर्ग जानेवाला समझना चाहिये ॥ १५५ ॥ १५६ ॥ कीदृशः पुरुषो लोके मोक्षं गच्छति भो गुरो !