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[८९] समस्त अंग धर्मानुकूल प्राप्त होते हैं । संसारमें प्रभुता, आज्ञा
और मान्यता बढती है और श्रेष्ठ बुद्धि संसाररूपी अग्निको शांत करनेमें समर्थ होती है । इस प्रकार सुपात्रदान देनेसे समयके अनुसार इस संसारमें समस्त श्रेष्ठ पुण्यके समूह प्राप्त हो जाते हैं। अत एव कहना चाहिये कि मोक्ष देनेवाले इस सुपात्रदानकी महिमा इस संसारमें सर्वोत्तम मानी जाती है ॥ १५९ ॥१६० ॥ १६१ ॥
'धर्म जहाति सदृष्टिनिन्दया भो गुरो ! न वा ?
प्रश्नः-हे गुरो ! सम्यग्दृष्टी पुरुष अपनी निंदा होनेपर धर्म को छोड देता है वा नहीं ?
यथैव लोके सविता खरत्वम्, शशी च शीतं कुसुमं सुगंधम् । इक्षुश्च दुग्धं मधुरत्वमेवं, निम्बो कटुत्वं च विषं हि सर्पः ॥१६॥ तोयं यथाधोगमनं च पापी, वक्रां गतिं नीचजनः कदापि । आग्निर्यथौष्ण्यं कलहं विभावः, चैतन्यशक्ति सकलोऽपि जीवः ॥१३॥