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[१७] मिथ्यात्वमूढः खहितं न वेत्ति,
चारित्रमोहान्न च दृष्टिपूतः । हिताहितज्ञानकरी सुबुद्धि-,
मेभ्यो जिनेन्द्रः सततं ददातु ॥१७८॥ उचरः-जिनधर्मसे रहित राजा प्रजाके हित अहितको कभी नहीं जान सकता, मुख मंत्री सज्जन राजाके हिताहित को नहीं जानता, कंटिल स्त्री अपने पतिके हिताहित को नहीं जानती, सिंह पशुओंके हिताहितको नहीं जानता और दुष्ट पुरुष सज्जनोंके हिताहितको कभी नहीं जानते । इसीप्रकार चोर श्रेष्ठ धर्मात्मा पुरुषोंके हिताहितको कभी नहीं जानते और पापी बलवान् पुरुष इस पृथ्वीपर निर्बलोंके हिताहितको नहीं जानते, अथवा धनवान पुरुष निर्धनोंके हिताहित को नहीं जानते, और कुधर्मी पुरुष धर्मानुष्ठानोंके हिताहित को कभी नहीं जानते। इसीप्रकार कृपण पुरुष अपने प्राणोंका भी हिताहित नहीं जानते और स्वार्थी पुरुष किसीके हिताहितको नहीं जानते । इसी प्रकार मिथ्यादृष्टि पुरुष अपने आत्माके हितको भी नहीं जानते और चारित्रमोहनीय का उदय होनेपर सम्यग्दृष्टि जीव भी अपने आत्माका हित नहीं जानते । अतएव भगवान जिनेन्द्रदेव इन जीवोंको हिताहितका ज्ञान प्रगट करानेवाली सुबुद्धि सदा देते रहें ॥१७५-१७८॥