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[१०१] और व्याकुल यह जीव जो चिंतन करनेमें भी न आवें ऐसे क्लेश देनेवाले और विषय-संसाररूपी समुद्रमें परिभ्रमण किया करता है और कर्मोके जालमें सदा नृत्य किया करता है ॥ १८३ ॥ १८४ ॥
भी गुरो ! नरकाद्यायुर्बध्यते केन हेतुना ?
प्रश्न:-हे गुरो ! नरकादिक आयु का बंध किन किन कारणोंसे होता है।
श्वभ्रस्य चायुर्बहुजीवघात, रायुस्तिरश्चां कुटिलैः कुभावैः । मित्रैर्नराणां च शुभैः सुराणां, निजात्मबाद्यैः सकलैश्च जीवैः ॥१८५॥ भ्रांतिप्रदं क्लेशकरं यदायु, स्तबध्यते मोहविशेषतो हि । पूर्वोक्तभावैः खलु यश्च मुक्तः,
स बध्यते नैव कदापि काले ॥१८६॥ उत्तरः-अधिक जीवोंकी हिंसा करनेसे नरक आयुका बंध होता है, कुटिल और अशुभ परिणामोंसे तिर्यचायुका बंध होता है, शुभ और अशुभ मिले हुए परिणामोंसे मनुष्यायुका बंध होता है और शुभ परिणा.