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[१०९] स्वर्गमोक्षमें जानेवाला और सब जीवोंके द्वारा पूज्य, समझना चाहिये ॥ १९८॥ कोसौ लोके ससंगोऽस्ति विसंगोऽस्ति चकः सुधीः?
प्रश्न:- हे गुगे ! इस संसार में परिग्रह सहित कौन है और परिग्रहरहित बुद्धिमान कौन है ?
यः कोऽपि मर्त्यः सुनिजात्मभावे, मौनेन युक्तः शुभध्यानलीनः । सम्यक्त्वयुक्तः सु कषायमुक्तो, ध्रुवं ससंगोपि विसंग एव ॥१९९॥ यः कोपि संकल्पविकल्पयुक्तो, मौनेन युक्तोऽपि बहुप्रलापी। मिथ्याप्रपंचैः सहितश्च यः स ।
सदा विसंगोऽपि ससंग एव ॥२०॥ उत्तरः-जो मनुष्य अपने आत्माके शुद्ध परिणामोंमें लीन रहता है, जो मौन धारण करता है, शुभध्यानमें लान रहता है, जो सम्यग्दर्शनसे सुशोभित है और कषायोंसे रहित है वह मनुष्य अवश्य ही परिग्रहसहित होने पर भी परिग्रहरहित माना जाता है। तथा जो मनुष्य अनेक संकल्प विकल्प करता रहता है, मौन धारण करनेपर बहुत