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[११९] खाता पीता है उस पापी का धन गढे हुए पत्थरके समान समझना चाहिये । उस धनको या तो चोर चुरा ले जाते हैं अथवा राजा हरण कर लेता है, अथवा शीघ्र ही वह अपने आप नष्ट हो जाता है ॥ २२३ ॥ प्राप्य बोधिं न च घ्नन्ति कारीन् कीदृशाश्च ते?
प्रश्न:- हे गुरो ! जो पुरुष रत्नत्रयको पाकर भी कर्मरूपी शत्रुओंका घात नहीं करते वे मनुष्य कैस हैं ? लब्ध्वापि दुर्लभां बोधि संसारक्लेशनाशिनीम् । कर्मशत्रून् खलान् भीमान् ये जयन्ति न यत्नतः जेतुं ये प्रयतन्ते न न परान् प्रेरयन्त्यपि । इच्छानुसारदं लब्ध्वा चिंतारत्नं मनोहरम् ।।२२५ क्षिपन्त्येव भवाब्धौ वा कामधेनुं सुकामदाम् । त्यजन्ति गहनेऽरण्ये ये स्वकल्पानुसारदम्॥२२६ कल्पवृक्षं च लब्ध्वापि दहन्ति सहसैव ते । नृजन्मवल्लिमेवापि मन्ये छिन्दन्ति ते ध्रुवम् ॥२२७
उत्तरः-जो मनुष्य अत्यंत दुर्लभ और संसारक ' क्लेशोंको नाश करनेवाले रत्नत्रयको पाकर भो अत्यंत दुष्ट
और भयंकर ऐसे कर्मरूप-शत्रुओंको यत्नपूर्वक नहा जीतते हैं अथवा उनको जीतने के लिये कोई प्रयत्न नहीं