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[१०८] उत्तरः-जो पुरुष प्राणियोंकी हिंसा करनेमें चतुर है वह पाषी समर्थ होकर भी असमर्थ कहा जाता है। तथा जो मनुष्य कुंथु आदि छोटे छोटे जीवों की और पशु वा मनुष्योंकी रक्षा करने वा उनके पालन पोषण करनेमें सदा चतुर रहता है वह विना शक्तिके भी सशक्त गिना जाता है । अथवा जो सबतरहके संकल्प विकल्पोंसे रहित है वह मनुष्य तीनों लोकोम सामर्थ्यवान् गिना जाता है और वही मनुष्य इन्द्र चक्रवर्ती आदिके द्वारा वंदनीय गिना जाता है ॥ १९६ ॥ १९७॥ परवस्तु सदा त्यक्तं केन जीवेन भो गुरो !
प्रश्न:-हे गुरो ! इस संसारमें किस जीवने परपदार्थों का ल्याग कर दिया है ?
मुक्तोऽस्ति कोपादिचतुष्टयैयस्तेनैव मुक्तं परवस्तु सर्वम् । स एव लोके निजसाधकोऽस्ति, स्वर्मोक्षगामी सकलैश्च पूज्यः ॥१९८॥ उत्तरः-जिस मनुष्यने क्रोध, मान, माया, लोभ इन चारों कषायोंका त्याग कर दिया है उसीन संसारके समस्त परपदार्थोंका त्याग कर दिया समझना चाहिये । तथा उसी मनुष्य को अपने आत्माको सिद्ध करनेवाला,