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दत्तापवादं कृतरोषदोषं, कृतापमानं निजशान्तवृत्त्या ॥२०९॥ न केवलं यः सहते हि किंतु, तेषां हि चित्ते सुजनत्ववीजं । सुशीलबीजं सुजनः सुशीला, सद्धिबीज वपतीति साधः ॥२१०॥
उत्तरः-जिसप्रकार आम्रका वृक्ष नीचेसे फेंकी हुई और दुःख देनेवाली पत्थरकी चोटको सहता है तथापि वह वक्ष उस पत्थर फेंकनेवाले पुरुषको मनोहर पौष्टिक और अच्छे मीठे फल देता है, तथा नदी भी शरीर धोनेवाले को और मलिन वस्त्रों को अत्यंत पवित्र कर देती है, तथा गाय घास भूस खाती है और दान पूजाके योग्य दूध, देती है। उसी प्रकार मुशीला स्त्री और सज्जन साधु दुसरोंके द्वारा दिये हुए सवतरहके दुःखोंको सहते हैं, जो कोई उनका अपवाद करता है, उनको दोष लगाता है, या उनपर क्रोध करता है वा उनका अपमान करता है, उस सबको वह सुशीला स्त्री और सजन साधु अपनी स्वभाविक शांततसे सहन कर लेते हैं। वह सुशीला स्त्री आर सज्जन साधु दूसरोंके दिये हुए दुःखोंको सहन करके ही नहीं रह जाते हैं किन्तु उन दुःख देनेवालोंके