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उत्तरः—हे वत्स ! भक्ति पूर्वक पात्रदान देनेका, देवपूजा करनेका, आत्माकी सिद्धि करनेका परिणामोंको शुद्ध रखनेका, शक्तिके अनुसार व्रत उपवास करनेका, भक्तिपूर्वक ध्यान धारण करने और योगधारण करनेका, शास्त्रोंके सुननेका, नम्रता वा विनय धारण करनेका, श्रेष्ठ बुद्धिका, तपश्चरण करने, जप जपने और मंत्रोंकी विधियों के करनेका, समितियों के पालन करनेका, गुप्तियों के पालन करनेका, स्वाध्याय करनेका, धर्मधारण करनेका और संयम पालन करनेका फल, मरणके समय में संसार के दुःखों को देनेवाले अन्य समस्त पदार्थोंको भूल जाना, भाई बंधु आदि मोह बढानेवालोंको भूल जाना और चैतन्यस्वरूप अपने आत्मासे उत्पन्न हुए आनंदामृत पिंडका स्मरण करना समझना चाहिये || २०१-२०३ ॥
पूजितः पीडितः सद्भिः खलैः साधुः करोति किम् ?
प्रश्नः– यदि कोई सज्जन साधुओंकी पूजा करता है कोई दुष्ट साधुओं को पीडा पहुंचाता है तो दोनों अवस्था में साधु क्या करते हैं ?
एकश्च साधोः क्षिपतीह कण्ठे, सर्प द्वितीयश्च करोति पूजाम् ।