________________
ध्यायमें, धर्ममें, पूजामें, पात्रदानमें, ध्यानमें अन्य पवित्र पुण्यकार्यों में, आत्माको शुद्ध करनेके साधनों में और शुद्ध आत्मामें सदा के लिये बहुत शीघ्र लगा देनी चाहिये ॥१८१ ॥ १८२॥
तत्त्वविज्ञानशन्यः क जनो भ्रमति नृत्यति ? . प्रश्न:- हे प्रभो ! तत्त्वज्ञानरहित मनुष्य कहां कहां भ्रमण करता है और कहां २ नृत्य करता है ?
अस्यास्मि कर्ता हि ममेदव, कार्यं च नेता जनबांधवानाम् । भृत्या ममैते भुवनं च राज्यं, मिथ्यात्वदोषादिति मन्यमानः ॥१८॥ सन् स्वात्मशून्यो जिनधर्मबाह्यः, सदैष जीवो विकलो वराकः । भ्रमत्यचिन्त्ये विषमे भवाब्धौ,
क्लेशप्रदे नृत्यति कर्मजाले ॥१८४॥ . उत्तरः-मैं इस कामका करनेवाला हूँ, यह काम मेरा है, मैं अपने कुटुंब परिवारका नेता हूं, ये मेरे सेवक हैं और यह देश तथा राज्य मेरा है । इसप्रकार मिथ्यात्वके दोषसे माननेवाला आत्मज्ञानरहित, जिनधर्मरहित नीच