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भवत्यवर्णवादात्किं जिनादीनां गुरो वद ?
प्रश्नः - हे गुरो ! जिनेद्रदेव आदि के अवर्ण वाद करने से क्या होता है सो बतलाइये ?
अवर्णवादान्नरको जिनस्य, भवेद्धि साधोरपवादयोगात् । धर्मस्य भूपस्य च निन्दया वा, भ्रान्तिर्भवे स्यान्निजमृत्युरेव ॥ १७९ ॥ भीमे भवाब्धौ भ्रमणं भवेद्धि, पूजा सुदानस्य च निंदया वा । शुद्धात्मनस्तत्त्वविचिन्तनस्य, प्रणिदयाशांतिरगाधचिन्ता ॥ १८० ॥
उत्तर :- भगवान् जिनेन्द्रदेवका अवर्णवाद वा निंदा करनेसे नरककी प्राप्ति होती है, इसीप्रकार साधुकी निंदा करनेसे भी नरककी प्राप्ति होती है। धर्मकी निंदा करनेसे संसार में परिभ्रमण करना पडता है, राजाकी निंदा करनेसे अपनी मृत्यु होती है, भगवान् जिनेन्द्रदेवकी पूजा और पात्रदानकी निंदा करनेसे अत्यंत भयानक ऐसे संसाररूपी समुद्र में परिभ्रमण करना पडता है, शुद्ध आत्मा की निंदा करनेसे आत्मामें भारी अशांति बढ