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जाती है तथा तत्त्वाचिन्तन वा ध्यानकी निंदा करनेसे अगाध चिंता बढ़ जाती है ॥ १७९ ॥ १८० ॥ नरत्वं प्राप्य किं लोके करणीयं जनगुरो !
प्रश्न:-हे गुरो ! इस संसारमें मनुष्यजन्म को पाकर लोगोंको क्या करना चाहिए ? ।
पुण्योदयादेव नृजन्म लब्ध्वा, भव्यैः प्रसादः स्वपदे न कार्यः। कुटुम्बवर्गे सकलेऽपि नष्टे, षट्खण्डराज्ये सुमनोहरेऽपि ॥१८१॥ स्वाध्यायधर्म यजने सुदाने, ध्याने सुकार्येऽपि सदा पवित्र । ज्ञात्वेति शीघ्रं निजसाधने हि,
नियोजनीया स्वपंदे सुबुद्धिः ॥१८२॥ उत्तरः- भव्य जीवोंको अपना समस्त कुटुंब वर्ग और मनोहर श्रेष्ठ छहो खंडका राज्य आदि सर्वस्व नष्ट होनेपर भी पुण्य कर्मके उदयसे प्राप्त हुए इस मनुष्यजन्मको पाकर अपना आत्मकल्याण करनेमें-शुद्धात्माकी प्राप्ति करनेमें कभी प्रमाद नहीं करना चाहिये । इसी बातको अच्छीतरह समझकर भव्य जीवोंको अपनी सुबुद्धि स्वा