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[ ८५] यः स्वल्पलोभी विमलप्रवृत्तिः, संसारभीरुश्च दयाचित्तः । विनीतवृत्तिः समशांतियुक्तो, धर्मप्रचारी च कुकर्मलोपी ॥१५३॥ रुचिं विधत्ते गुरुदेवशास्त्रे, धर्मे सुदाने यजनेऽपि दक्षः। पूर्वोक्तभावैरिति यश्च युक्तः,
स एव धीरो नरजन्मगामी ॥१५४॥ उत्तर:-जो जीव बहुत ही कम लोभ करता है, जो अपनी प्रवृत्तिको सदा निर्मल रखता है, जो संसारसे भयभीत है, जिसका हृदयं सदा दयालु बना रहता है, जो सदा विनयपूर्वक रहता है, जो समता और शांतिको सदा धारण करता रहता है, धर्मका प्रचार करता रहता है, कुकर्मोको नष्ट करता रहता है, देव शास्त्र गुरुमें सदा श्रद्धान धारण करता है, जो धर्म धारण करने, दान देने और पूजा करने में अत्यंत चतुर है । इस प्रकारके शुभ भावोंसे जो सुशोभित है वह धीरवीर मनुष्यगतिमें जाकर जन्म लेता है ॥ १५३ ॥ १५४ ॥ वर्गति कीदृशो जीवो याति भो सद्गुरो वद !