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अत्यंतकोपी कटुकप्रभाषी, धर्मस्य देवस्य गुरोर्विरोधी । धूर्तः शठः प्राणिबधे प्रवृत्तो, द्रोही च बंधोः कुलजातिलोपी ॥ १४९ ॥
दानादिधर्मेषु सदा रतानां, सुश्रावकाणां खलु निंदको यः । पूर्वोक्तभावैरिति यश्च युक्तः,
स एव पापी नरकस्य गामी ॥ १५० ॥ उत्तरः—जो अत्यंत क्रोधी है, कटुक भाषण करनेवाला है, जो देव, धर्म और गुरुका विरोधी है; जो धूर्त है, मूर्ख है; प्राणियोंकी हिंसामें सदा प्रवृत रहता है, जो अपने भाई बंधुओंका द्रोही है; जो कुल और जातिका लोप करनेवाला है और जो दान पूजा आदि धर्ममें सदा लीन रहनेवाले श्रेष्ठ श्रावकों की सदा निंदा करता रहता है; जिस जीवके ऊपर लिखे हुए भाव विद्यमान रहते हैं वही जीव पापी और नरकगामी समझना चाहिये । १४९ ।। १५० ।।
तिर्यग्गतिं च को जीबी गुरो ! गच्छति भो वद ? प्रश्न: -- हे गुरो ! यह बतलाइये किं तिर्यंच गतिमें कौनसा जीव जाता है ?