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[८१] स्वर्मोक्षदाता भवरोगहर्ता, स एव यावन्न भवेद्धि मोक्षः । ज्ञात्वेति भव्यैश्च जिनानुरागो, धर्मानुरागोऽपि सदैव कार्यः ॥१४६॥
उत्तरः-धर्ममें गाढ प्रेम रखना परंपरासे छही खंडके मनोहर राज्यको देनेवाला है, पुत्र पौत्र आदि इच्छानुसार विभूतियोंको देनेवाला है और इन्द्रादिकी विभूतियोंको देनेवाला है । इसीप्रकार यह धर्मानुराग स्वर्गमोक्षको देनेवाला है और जबतक मोक्षकी प्राप्ति नहीं होती तबतक संसारके समस्त रोगोंको हरण करनेवाला है। यही समझकर भव्यजीवोंको भगवान् जिनेन्द्रदेवमें सदा अनुराग रखना चाहिये और उनके कहे हुए धर्ममें सदा अनुराग रखना चाहिये ॥ १४५ ॥ १४६ ॥
आर्यमर्त्यस्य कार्याणि कानि संति जगद्गुरो ?
प्रश्न:- हे जगद्गुरो इस संसार में आर्यपुरुषोंके कार्य क्या हैं ?
निजात्मशुद्धिगुरुदेवसेवा, सुदानपूजा जिनतीर्थयात्रा ।