________________
[८०]
प्रश्न:-जो जीव रत्नत्रयरहित है वह इस संसारमें शोभायमान होता है वा नहीं ?
जीवादितत्त्वेषु जिनागमे च, खात्मानुभूतौ न रुचिं करोति। न भाति लोके स विबोधहीनः,
खाचारहीनो निपुणश्च कोऽपि ॥१४४॥ उत्तरः-जो कोई चतुर पुरुष भी जीवादिक तत्वोंका भगवान जिनेंद्रदेवके कहे हुए आगमका और अपने अत्माकी स्वात्मानुभूतिका श्रद्धान नहीं करता है वह आत्मज्ञानरहित और सदाचाररहित समझा जाता है तथा वह इस संसारमें कहीं भी शोभा नहीं देता ॥१४४॥
लोके धर्मानुरागस्य भो गुरो ! कीदृशं फलम् ?
प्रश्नः-हं गुरो ! इस संसारमें धर्मसे प्रेम करनेका फल क्या है ?
धर्मानुरागोऽपि परंपरेण, षट्खण्डराज्यस्य मनोहरस्य । पुत्रादिपौत्रस्य समीहितस्य, शक्रादिभूतेरपि दायकः स्यात् ॥१४५॥