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उत्तरः-जन्ममरणरूप संसाररूपी अग्निमें जलते हुए जीवोंको विश्रांति प्राप्त करनेके लिये छह कारण बतलाये हैं। जो कि मिथ्यात्वरूपी अंधकारको दूर करनेवाले हैं, शांति आदि सुखके कारणोंको देनेवाले हैं, और आत्मसुखको प्रदान करनेवाले हैं । वे छह कारण ये हैं। सदा विवेक धारण करना अर्थात् आत्माके हित अहित का विचार होना, समता और शांतिरूपी संपत्तिका प्राप्त होना, संसार शरीर और भोगासे विरक्तबुद्धि का होना, अपने आत्माका स्वराज्य अर्थात् सिद्ध अवस्था प्राप्त करानेवाली अध्यात्मविद्याका अभ्यास करना, दान पूजा आदि श्रेष्ठ कार्योमें अपनी प्रवृत्ति करना और अपने शुद्ध आत्मामें निवास करना। ये छह जीवोंको सुख और शांति देनेवाले हैं । इन्हींसे संसारके समस्त दुःख छूट जाते हैं ॥११२।।११३॥
भो गुरो ! निपुणः कोऽसौ कथ्यते वुधसत्तमैः ?
प्रश्न:- हे गुरो ! श्रेष्ठ विद्वान् लोक इस संसारमें निपुण किसको कहते हैं ?
क्षेमो विवेको हि कुटंबवगें, पूज्येषु भक्तिः सकलेषु मैत्री। जिनस्य सेवा करुणैव दीने, माध्यस्थवृत्तिर्निजबोधहीने ॥११४॥