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[७७] को कहते हैं जो कर्मरूपी शत्रुओंको जीतकर तीनों लोकों में प्रसिद्ध हुए हैं । अतएव वे ही ब्रह्मा, विष्णु और महादेव इंद्र, चक्रवर्ती आदिके द्वारा वंदनीय हैं। इन अरहंत और सिद्ध परमेष्ठीके सिवाय अन्य कोई भी ब्रह्मा विष्णु वा महादेव पूज्य और वंदनीय नहीं है । ।। १३७ ॥ १३८ कोऽसौ दीनोऽस्ति लोकेऽस्मिन् हे गुरो ! कथयाधुना?
प्रश्न:-हे गुरो ! अब यह बतलाइये कि इस संसार में दीन कौन है ?
पाखंडिलिंगे गृहिलिंगधर्म, पापम्य बीजे विषये च पापी । यः स्वात्मबाह्ये परवस्तुरूपे
करोति मोहं भुवि सोऽस्ति दीनः ॥१३९॥ उत्तरः-जो पापी मनुष्य पाखंडको धारण करनेवाले कुगुरुओं में, गृहस्थ अवस्थामें ही धर्मकी पूर्णता माननेवालोंमें, पापोंका कारण ऐसे विषयों में और आत्मासे सर्वथा भिन्न ऐसे परपदार्थों में मोह करता है संसारमें वही मनुष्य दीन कहलाता है ।। १३९ ॥ निजात्मनो निवासश्च हे गुरो ! कास्ति भूतले ? ___ प्रश्न:-हे गुते ! इस संसारमें इस अपने आत्माका निवास कहांपर है ?